About Book
मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो,
मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो, मुझे भय से अभय की ओर ले चलो,
मुझे दुःख से आनंद की ओर ले चलो,
और ले चलो मुझे आनंद से परमानंद की ओर,
ले चलो परमात्मा मुझे उस डगर पर जहां मेरा अस्तित्व शेष न बचे। शेष रहे तो अचिंत्यानंद।
क्योंकि…
जीवन निरंतरता है, गतिशीलता है और वर्ष
मात्र अंकगणित। आनंद निरंतरता में है
अंकगणित में नहीं। परमात्मा को जानने का
मार्ग आनंद है। हमने गणित में उलझकर
आनंद को खो दिया। परमात्मा को जानने का
मार्ग खो दिया।
आओ चलें फिर से उस मार्ग पर जहाँ आनंद हो,
परमानंद हो, अचिंत्यानंद हो और हो
परमात्मा का एहसास।
About Author
आगरा के ग्रामीण अंचल नगला गूजरा, मिढ़ाकुर में श्री वीरीसिंह सोलंकी एवं श्रीमती सुखवीरी सिंह सोलंकी के घर जन्मे एवं देश की राजधानी दिल्ली में निवासरत डॉक्टर देवेंद्र सिंह सोलंकी वर्तमान में दिल्ली सरकार के आयुष विभाग में मुख्य चिकित्साधिकारी होम्योपैथी के पद पर अपनी सेवा प्रदान कर रहे हैं।
लेखक ने पुस्तक से होने वाली समस्त आय कल्पना सोलंकी को प्रदान करने का निर्णय लिया जिसका उपयोग वे धर्मार्थ कार्यों में करेंगी।
मैं आशा करता हूँ आप समस्त पाठक बिना किसी पूर्वाग्रह के इसका पठन करेंगे। रचित गीतों को गुनगुनाएंगे एवं कविता का मनन करेंगे।
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