About Book
“घुटनों के बल बैठी स्त्री का परिचय पाकर राम अचम्भित हो गए। उनके मुखमण्डल का तेज जाता रहा और कंठ सूख गया। रावण का परिचय राम को था। विश्रवा और कैकसी की कथा भी सुन रखी थी परन्तु सूपनखा को प्रथम बार देखा था। राक्षसी स्त्रियाँ भी इतनी रूपसी होती हैं राम ने प्रथम बार जाना। अब तक जितनी भी राक्षसी स्त्रियों का वध किया वे सब की सब इतनी सौंदर्य की धनी नहीं थीं। किसी का उदर विकृत था तो कोई विशाल तनु की स्वामिनी थी। किसी के मुखमण्डल पर जंगल का सूनापन था तो किसी का शरीर गर्त से भरा रहता था। परन्तु सूपनखा किसी ब्रह्माण्ड सुंदरी सी दिख रही थी। उसके मुख पर तेज था और वह तनुमध्या थी। उसका उदर कामशास्त्र का प्रतीक था तो उसका अर्धनग्न वक्षस्थल किसी भी राजपुरुष को प्रथम दृष्टि में मोहित करने के अनुरूप था। उसकी बातें उसके बुद्धिकौशल को प्रतिबिंबित कर रही थीं और वेश राजसी था। उसमें एक पृथक आकर्षण था। ऐसा आकर्षण जैसा इन्द्र की नर्तकियों में होता है।”
About Author
आगरा के ग्रामीण अंचल नगला गूजरा, मिढ़ाकुर में श्री वीरीसिंह सोलंकी एवं श्रीमती सुखवीरी सिंह सोलंकी के घर जन्मे एवं देश की राजधानी दिल्ली में निवासरत डॉक्टर देवेंद्र सिंह सोलंकी वर्तमान में दिल्ली सरकार के आयुष विभाग में मुख्य चिकित्साधिकारी होम्योपैथी के पद पर अपनी सेवा प्रदान कर रहे हैं।
‘अचिन्त्यन’ नाम से यह उनकी प्रथम कृति है। आधुनिक समाज में जिस तरह से महिलाओं को अमानवीय तरीके से उनके मुख पर तेजाब आदि डालकर उन्हें कुरूप बनाया जाता है, उनके साथ व्यभिचार किया जाता है ठीक उसी तरह से त्रेता युग में सूपनखा के नाक और कान काटकर कुरूप बनाया गया था। उस कुरूपता के दंश की व्यथा ही इस कहानी का सार है।
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